शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

वा.... जालना वारे व जालना

कोई इंतजाम नहीं .... किसीको कुछ प्रॉब्लम नहीं ..... हसकर कहते है सब यहाँ इएसा ही होता है ..............

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010


Welcome to the MAZI CHOTISHI PRAYOG SHALA my tiny lab(student , teachers ,schools, parents, .........you can make your own lab........ i will guide you for making lab...........free of charge)

Namaskar. I am sanjay tikariya jalna maharashtra india All the teachers, science friends , students , depart. ,and all school and all of science's friends..... i want to convey all of us that i have made such a laboratory known as "SANJAY TIKARIYA'S TINY LAB''(sanjay tikariya yanchi mazi chotishi prayog shala ) This is an educational lab and it is world's smallest educational lab ( 2x2x1xF )/There are 120 appratuses and with these we can do 500 basic science experiments( simple tools and a wooden box ) through simple tools and a wooden box this tiny lab is made . It is very imp. for the students of 1st to 8th std. ; we can creat this lab in very little price, by spending 5000 thousand rs only my tiny lab I have trained all the schools unders 'sarva shiKSH abhiyan ' Through MSCERT all the teachers (science) of maharashtra are trained by me about making such kind of tiny science lab who ever. from any school call me for guidence i always think about that invitaion you can contaut me through phone , email, carresplndince etc , 1) my tiny science lab -- teching and creation 2) cd 3) training 4) BOOK 5) OTHER information cont. me-- sanjaytikariya@rediffmail.com /09423923191/
02482223023 add- sanjay b. tikariya anand nagar .revgav rod jalna 431,203 maharashtra for my profail must go on ibibio.com india.........sanjaytikariya34@gmail.co

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

ऐसा लग रहा है के हम जालना वासी उल्टा प्रवास कर रहे है .....................................................................
नेताजी कुछ तो कीजिये अआप सुनिए नेताजी गाना हम तो गा नही सकते आपकी तरह खुश हाली का मर रहे हम कुछ कर सजते काश ...... पर लिख तो सकते है न

जालना बस्‍ती तंजनिगारान

बस्‍ती तंजनिगारान बसते-बसते बसी हुई एक बस्‍ती है। इसका नाम भी बाद में ही पड़ा लगता है। नगरपालिका क्षेत्र से सटी हुई है और शहर में शरीक होने के लिए कमर कस कर डटी हुई है। यहां हर तरह के तंजनिगार पाए जाते हैं। यहां बिजली, पानी,सड़क की किल्‍लत के अलावा शहरी आबादी के प्रतीक कीचड़, गंदगी, चिल्‍लपों,आवश्‍यकतानुसार सूअर,अनाथ कुत्ते वगैरह-वगैरह सब कुछ मयस्‍सर हैं। इसके पास ही शहर के सफाई कर्मी कचरा लाकर जमा करते हैं। शहर की नालियां यहीं आकर दम लेती हैं, अतः प्रचुर मात्रा में दुर्गन्‍ध, डेंगू और मलेरिया दूत विघमान हैं। ऐसे माहौल में जन्‍म लेकर किसी का व्‍यंग्‍यकार बनना तो तय हैं ही,अगर यहां आकर रहने वाला भी व्‍यंग्‍य लिख मारे तो कोई खास ताज्‍जुब की बात नहीं। हां, कोई दिलकश नगमें लिखने की सोचे तो जरुर सोचना पड़ेगा। यहां के मुकीम एक से एक बढ़-चढ़ कर है। इनके द्वारा लिखा गया व्‍यंग्‍य ही होगा, यह सोचकर ही इनका लिखा पढ़ना पड़ता है।

अगर जरा तवारीख के पन्‍ने पलटें तो पाएंगे कि इनमें से किसी ने तो इश्‍क पर करारा व्‍यंग्‍य किया है, कोई दो थनी गदही का दूध निकाल चुका है तो कोई कुत्ती और सूअरी के थन गिन चुका हैं पिछले दिनों दाल के जरा से भाव क्‍या बढ़े लगभग सभी के सभी दाल पर ही पिल पड़े थे। कोइ दूरदराज बैठे लालू पर लाल-पीला हो चुका है तो कोई अबला जयललिता को कोसा है। किसी ने वीरप्‍पन, मुशर्रफ, लादेन, उमर, बुश पर अपनी कलम भांजी है। चाहे कभी भी गली के किसी टटपुंजे दादा की पुलिस थाने में रपट लिखवाने की हिम्‍मत न कर पाया हो, कहीं कोई ऑफिस से चुराई स्‍टेशनरी चुरा कर देश में बेतहाशा फैलते भ्रष्‍टाचार पर करारा व्‍यंग्‍य कस रहा है तो कोई कार्यालय समय में सरकारी कुर्सी पर बैठ कर सरकारी विभागों की लेटलतीफी पर व्‍यंग्‍य खेंच रहा है। किसी को कुछ भी विषय नहीं मिलता तो अपनी बीवी पर ही लिख डाला तो कोई हैलमेट, ऊपरी कमाई, बंदरिया का नाच पर ही व्‍यंग्‍य लिख बैठा। अगर गलती से किसी ने तंजनिगारों के एक से ज्‍यादा व्‍यंग्‍य लेख पढ़े हो तो देखा होगा कि इनके लेखों में मौजूं के अलावा कुछ नहीं बदलता ।कई कई मर्तबा तो कई को पढ़ने के बाद सोचता हूं कि जनाब क्‍यों लिख रहे हैं।

यहां ऐसे-ऐसे महारथी वास करते हैं कि जिनके व्‍यंग्‍य लेख निबंधों, ललित लेखों के स्‍वाद से भी सराबोर होते है। जरा आप ही सोचिए कि भ्रष्‍टाचार, आंतकवाद, पारदर्शिता, राजनीति और शराफत जैसे शोध के मौजूआत पर तंज करना कितना लाजिमी है? मुहावरों का मिसयूज, उल्‍टा-पुल्‍टा वाक्‍य विन्‍यास, कुविशेषण ही यहां तंज में शुमार होते हैं। मगर इस बस्‍ती वाले हैं कि बस, कौन समझाए इन्‍हें, अगर आप समझाने जाएं तो प्राथमिक उपचार का सामान अपने साथ ले जाएं।कभी- कभार तो इनका महज नाम और मेहनताने के लिए लिखा गया व्‍यंग्‍य खुद व्‍यंग्‍य लेखक पर ही पर ही प्रहार करता मालूम होता है और सब तो ठीक-ठाक चलता रहता है,मगर ये किसी एक अपना सरदार मानने में आज तक एक राय नहीं हो पाए हैं। उम्ररशीदगी के बिना किसी एक को सरदार चुनने का मसविदा इस दलील के बूते पर खारिज कर दिया जाता है कि उम्र अपने आप में कोई उपलब्‍धि नहीं होती, उल्‍टा सठियाने की सनद होती है।

न किसी को लम्‍बे समय से लिखने की बिना पर तदर्थ आधार पर ही सरदार चुना गया ,उसने जब कभी भी हक मांगा तो कोई तव्‍वजो नहीं दी गयी ऊपर से पूछा गया कि कौनसा तीर मार लिया, इतने सालों में ? इसके अलावा मेहनताना सहब का बराबर है सो आधार कैसे बने ? न किसी का बड़े-बड़े लेख लिखना उसे सरदारी दिला पाया। व्‍यंग्‍य का विषय,मार्मिकता,स्‍थान,धार, औचित्‍य, स्‍तर और मात्रा का आधार किसी को सूझा नहीं। किसी ने अपनी एक भी रचना लौटकर न आने के आधार पर सरदारी पानी चाही तो सारे के सारे उसे हिकारत भरी नजरों से देखने लगे। किसी ने अपनी एक पुस्‍तक छप जाने का हवाला दिया मगर उसकी किसी ने नहीं सुनी। उसका अकादमी अध्‍यक्ष का साला होना भी सरदारी का आधार नहीं बना पाया। इस बस्‍ती तंजनिगारान में साहित्‍यिक गोष्‍ठियां भी लगभग हर रोज होती ही रहती हैं। देर रात तक भी चलती हैं। कभी अगर बहस में सभी चुप हो जाते हैं तो संभावित नीरवता को तोड़ने का काम कुत्ते कर देते हैं।

अंततः जब सबके पारे चढ़े होते हैं तो बात तू तू मैं..मैं तक पहुंच जाती है। वहां उपस्‍थित उम्ररशीदा लोग हाथापाई और जूतम पैजार के अंदेशे को भांप कर चलते बनते हैं। बाकी अदीब उनका अनुसरण करते हुए इस अनिर्णित सभा का विसर्जन कर देते हैं। लगता है यह मसला ‘बोन' में ही सुलझेगा। ये किसी और को तो क्‍या पढ़ेंगे, खुद का लिखा भी दुबारा नहीं पढ़ सकते हैं। बस धड़ाधड़ लिख रहे हैं। ये मुकीम बस्‍ती तंजनिगारान के।